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एक शेर सूना था
” दुश्मनों से खुद बा खुद प्यार हो जाएगा, दोस्तों को आजमाते जाईये”
जब हम किसी को प्यार करते है तो आँखे बंद और दिल साफ़ होता है और किसी पर विश्वास करते है तब भी यही कहा जाता है की अमित है विश्वाश और हम अपना दिल खोल कर रख देते है ताकि यह साबित हो जाये की हम उससे कुछ भी नहीं छिपा रहे है और वह भी हम पर उतना ही विश्वाश कर सके जितना हम उस पर कर रहे है पर धक्का उस समय लगता है की जव उसके द्वारा दी गयी प्रितिक्रिया हमें किसी दुसरे से मिलती है चाहे अच्छी हो या गलत पर जो बात आमने सामने हो सकती थी वह किसी अन्य माध्यम से सामने आती है बड़ा दुःख होता है पर सहना पड़ता है क्यों की सम्बन्ध सामान्य बनाये रखने है या कह सकते है की बुरा बखत हो तो अपने आपको कितना सामान्य रख सकते है रख लीजिये.
कहा जाता है कछुआ एक जीव है जो विपति आने पर अपने सभी अंग अपने अन्दर ही समाहित कर लेता है फिर उस पर कोई भी चोट करो वह बे असर है. जीवन में कभी कभी ऐसे क्षण आ ही जाते है की आदमी अपने आ प से ही डरने लगता है सोंचने लगता है इस की तो उम्मीद भी नहीं की थी यह कैसे हो गया पर हो जाता है जिनपर हम आँख बुंध कर विश्वास करने लगते है वह ही हमारे नए दुश्मन बन कर उभर जाते है? कहा भी जाता है की सबसे खतरनाक दुश्मन वही हो जाता है जो कभी हमदर्द रहा हो.
एक कहानी थी चलो शेयर करते है
एक साधू था जो नदी में नहा रहा था अचानक उसकी नज़र एक बिच्छू पर पड़ गयी उसने सोचा की इसको मदद कर बाहर निकाल दिया जाये कोशिश की तो डंक मार दिया साधू ने फिर कोशिश की पर बिच्छू ने फिर डंक मार दिया एक आदमी जो उस साधू को देख रहा था बोलो बाबा क्यों उसको बाहर निकाल रहे हो जब बह बार बार आपको डंक मार रहा है उस पर साधू हसा और कहा की जब बह अपनी डंक मारने की आदत नहीं छोड़ रहा है तो में बचने की आदत कैसे छोड़ दू. बात में मर्म था पर आज जब हम इसको अपने जीवन में डालने की कोशिश करते है शून्य सा परतीत होता है क्यों जिन लोगो को दोस्त मानकर चल रहे थे आज सब बे गाने से लग रहे है.
जीवन एक राजनेतिक मंच नहीं है जहां दोस्त और दुश्मनी की कोई उम्र नहीं होती यानी जव चाहो दोस्ती कर लो जव चाहो दुश्मनी कर लो एक पूरा जीवन संबंधो को बनाने में लग जाता है और जव कोई इस तरह का वाकया आता है तो फिर हर आदमी में अविश्वाश की झलक दिखती है वह घातक होती है बर्तमान में यदि एक शकश को देखते है तो लगता है बेबफा ही होगा जब आम सम्बन्ध ही सटीक नहीं रहे तो फिर कल की बात कौन करेगा ?
बर्तमान में देश में चल रही उठा पटक और रिश्तो की बाजीगरी हमें सोचने पर मजबूर करती है रिश्ता अनमोल है पर सोच समझ के. आज कल नई पीडी फ्रेंडशिप के लिए आतुर है पर इसका हश्र जाने विना जैसे हर पेग शराव का अगले की आहट खोजता है वही मर्म हर रिश्ते में खोजे जाते है और अगले कदम की प्रतीक्षा की जाती है फिर कुछ लोग कामयाव हो चलते है और कुछ …………….? फिर हमारा टेस्ट भी तो स्थिर नहीं है ? फिर भी हम जूमला याद कर ही लेते है जो हुआ अच्छा हुआ और जो होगा अच्छा ही होगा पर कव?
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