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घुम्मकड़ की नज़र

sunraistournews
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समय बदल रहा है हर इन्शान बदल रहा है मौसम बदल रहा है प्रकृति बदल रही है चाँद सूरज बदल रहे है तो हम क्यों नहीं बदल रहे है या तो समय के हिसाव से बदल लो बरना पिछड़ जाने का डर है आखिर में यह क्यों कह रहा हूँ में भी नहीं जनता की में कोई नेता या समाज सुधारक तो नहीं हूँ जो लोग मेरा अनुशरण करने लग जायेंगे या कोई साधू भी नहीं हूँ जो रामदेव की तरह रातो रात हीरो बन जाने की ललक मन में पाल रखी हो. पर साधुवाद की नज़र में सब चोर नहीं है कुछ की मजबूरी होती है कुछ जान बुझ कर गलती कर रहे है कौन समझाए की देश को अब आज़ाद हुए एक लम्बा अरसा बीत चुका है यह बात और है की तर्रकी की रोशनी हर तरफ नहीं फ़ैल सकी इसमें दोष हमारा ही है क्यों की हम समय की नब्ज नहीं पहचान सके या यु भी कहा जा सकता है की निहित स्वार्थी लोगो ने रोशनी उन लोगो तक नहीं आने दी जिन को इसकी जरुरत थी.और हम पीछ लग्गू बनने में ही अपनी भलाई मान कर चल रहे थे. आत्म अबलोकन का समय ही नहीं मिला. या हम अपने भाग्य का लिखा मान कर चुक गए ?
कुछ दिन पहिले एक ब्लॉग पर गया था वह इंडिया टाइम्स पर था में जान बुझ कर किसी की आलोचना करना अपना धर्म नहीं समझता क्यों लिखने से पहिले हर आदमी उस विषय पर सोचता जरुर होगा. विषय था “भय से भक्ति” होती है मेने भी सोचने की कोशिश की भय से आदमी डर के उसका किस तरह से भक्त हो सकता है समझ में नहीं आया एक सन्यासी जी का लेख था उस पर प्रितिक्रिया देना भी मुर्खता थी की पहुंचा हुआ साधू हुया तो ग्रंथो का हवाला देकर मेरी बोलती बंद कर देगा में तो साधारण सा आदमी हूँ इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाया की दो शब्द लिख पाता लिकिन आपसे यही सवाल कर रहा हूँ की भय दिखा कर क्या भक्ति पैदा की जा सकती है जान बचाने या पंगा ना लेना भक्ति नहीं हो सकती. भय दिखा कर तो पुलिस हमेशा शाशन चलाती है तो क्या हम उनके भक्त हो गए हां यह तो हो सकता है की हम डर के मारे कोई गलत काम नहीं करे पर उनकी तस्बीरे हमारे घर के मंदिर में आ जायेंगी यह गलत फहमी लगती है आप ही सवाल का जवाब तलाशे. में किसी राजनेतिक दल के नेता का नाम लिए बगेर कह रहा हूँ कुछ नेता इतना जुल्म कर देते है की दुसरी पार्टी के नेता उनसे पंगा ना लेते और अपने काम भी रुकवाना नहीं चाहते है तो जी हजुरी तो करते है पर उनकी तश्वीर लेकर घर के मंदिर में नहीं रख देते है. इस तरह की घटनाये सीमित समय के लिए होती है समय निकलने के बाद पुनः शेर हो जाते है?

एक मेरे दोस्त है बम्बई के है उनको महिलाओ के ऊपर हो रहे अत्याचार में भी महिलाओ के ही छोटे कपडे कारण नज़र आते है जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया जिन महिलाओ ने घर में कदम रखा था आज वह चाँद और मगल पर जा चुकी है कोई भी काम उनसे अछूता नहीं है जो वह ना कर रही है दूर जाने की जरुरत नहीं है हमारे देश की राष्ट्रपति एक महिला है क्या सोनिया गांधी शीला दीक्षित माया मेमसाब यह नाम है जिन पर देश को नाज़ है इस देश में महिलाओ के अधिकार की लड़ाई लड़ी इंदिरा जी ने और अधिकार के लिए अनेक काम किये. यदि बराबरी का दर्ज़ा चाहिए तो घर से बाहर तो निकलना ही पडेगा? फिर अत्याचार तो कही भी और किसी पर हो सकते है उसके लिए पच्छिमी सभ्यता को दोषी मानना अपने कर्तव्य से मुह मोड़ना ही कहा जाएगा. अपराधी की कौम मज़हव और जाति से परे है अपराध करने वाला यह नहीं सोचता कि महिला ने छोटे कपडे पहने है या पुरे कपडे पहिने है यह हमारे समज का दोष है कि उनकी नज़र में नारी एक भोग्या है पुरुष प्रधान देश में उनके दोष भी वही लोग निकल रहे है जो उनकी तर्रकी से ना खुश है यदि कोई नारी अपने रहन सहन को सुविधा जनक बनाने में ही खुश है तो हमें आपति क्यों है यह परितिक्रिया जब आयी जब महिलाओ का बेशर्मी मोर्चा सामने आया और उसने प्रदर्शन किया तो तमाम लोगो ने इसकी आलोचना की जब मीडिया ने भी इसकी संख्या के बारे में बताया और इसको फेल करार दिया तो अचरज हुआ पर होना नहीं चाहिए क्यों की दवंग ही देश चला रहे है अत्याचार भी वही कर रहे है. जब पावर होती है तब कोई धर्म दिखाई नहीं देता और जव पाबर नहीं होती है तो हर शेर मेमना बना दिखाई देता है जिन लोगो के लिए काम किये जाते है वही सरेआम आँखे दिखाते है. यही है परिवर्तन आओ इसे आत्मसात करे इसी में ही भलाई है बरना हम पिछड़े कहे जायेंगे?
आख़िरी सवाल :
बार बार एक रामदेव पर सरकार का ही शिकंजा नहीं कस रहा है राखी सावंत का भी शिकंजा कस रहा है बच सकते हो तो बचो रामदेव जी ना जाने राखी को क्या हो गया है क्यों रामदेव के पीछे पडी है आप को पता लगे तो जरुर बता देना?

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