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समरथ को नहीं कोई दोष गुसाई

sunraistournews
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सरकार की दमन कारी नीति के चलते अब आम आदमी चुप है क्यों की सरकार और विपक्ष ने हाथ मिला लिया है और जब चाहे सरकार कीमत बड़ा देती है और विपक्ष सिर्फ वियान वाजी के साथ आलोचना करेगा और कुछ दिनों में सब शांत हो रोज़ मर्रा के जीवन में वियस्त हो जाएगा एक और जहां देश में वेरोजगारी फेल रही है काम धंधे ठप्प हो रहे है वही सरकार अपने नेताओ और मंत्रियो के वेतन बढाने में लगी है नौकरशाहों को महगाई के तोहफे दिए जा रहे है और मीडिया को खुश करने को बड़े बड़े विज्ञापन दिए जा रहे है ताकि माहौल को ख़राब ना किया जा सके. इसे क्या कहा जाएगा की जनता के दुःख दर्द जानने की सरकार को फिक्र है जी नहीं देश सिर्फ समर्थ लोगो के द्वारा ही चलाया जा रहा है और चलाया जाता रहेगा.;
“रघ्कुल रीति सदा चल आयी प्राण जाये पर वचन ना जाई”
मज़े की बात तो वह आंकड़े होते है जिन पर सरकार की निगाह होती है और विश्व की निगाह भी होती है की देश किस तरह से तर्रकी कर रहा है और उसी के हिसाव से देश के विकाश का आर्थिक ढांचा तयार किया जाता है अभी हाल ही में एक रिपोर्ट आयी की देश में आमदनी के हिसाव से दिल्ली नंबर वन गयी तो सरकार की निगाह में भी दिल्ली से ज्यादा टेक्स बसूला जाना चाहिए और उसकी शुरुआत गेस डीज़ल की कमाते बड़ा कर दी. रही कसर मिल्क कम्पनी ने कर दी अमूल के दाम बड गए. बड़े ही रुचिकर काम है जब सरकार चाहे दाम बड़ा देती है और हम चुप चाप कुछ दिन सरकार को कोश्ते है फिर उसी ढर्रे पर चल पड़ते है कभी कभी सोचते है की अब हमारी मांग विपक्ष उठाएगा पर वह क्यों उठाये आपके विषय कही भी तो चुनाव नहीं है जो चुनावो में उसको फायदा होगा. आज कल की रीति यही है की गिव एंड टेक का फार्मूला चल रहा है बरना सरकार की खामिया निकालने के लिए ही जनता उनको सरकार के बाद दुसरे नंबर पर रख देती है पर जनता की आवाज उठाना उनके बस की बात नहीं है वह सिर्फ दवाब बना कर अपना उल्लू सीधा कर लेते है
अब महगाई पर देश की संसद में बहस हुयी तो सरकार से हाथ मिला लिया बेसे तो मीडिया में चिल्ला कर देश की जनता की दुहाई देकर नहीं थकते पर क्या हुआ जो संसद में चुपचाप सरकार के साथ हो लिए? सरकार को घेरने के दो ही रास्ते थे जिन पर सरकार को घेरा जा सकता था महगाई और करेप्सन हर आदमी की दुखती रग है पर विपक्ष और पक्ष दोनों ही दाव खेल रहे है मीडिया मज़ा ले रहा है और लेना भी चाहिए पर कब तक?
अभी हाल में अमर सिंह को न्यायिक हिरासत में डाल दिया गया पर जग जाहिर की सरकार किसकी बची और किसने बचाई. जब पुरी दुनिया ने देखा की अमर सिंह दोषी थे पर उनका असितित्व एक महा सचिव का था पर पार्टी के मुखिया के ही इशारे पर किया काम होता है पर वह दूध के दुले साबित हो गए.
वही पुरी दुनिया ने देखा की नरेन्द्र मोदी गोधरा काण्ड में उनकी भूमिका संदेहों में थी गुजरात के अलावा पुरे देश ने उनको क्लीन चित नहीं दी पर कुछ भी आंच नहीं आयी ना ही सीट गयी. यदि एक मुख्यमंत्री के रूप उनका आंकलन किया जाए तो बेहतर सी ऍम साबित हुए पर देश के पी ऍम बन्ने की काबलियत पर कालिख लग गयी. यदि सही दिशा में चल रहे होते तो बिहार चुनावो में उनके और बरुन गाँधी के दोरे रोके नहीं जाते या कहा जा सकता है की उनके अपने ही लोग उनपर विशवाश नहीं करती यानी क्लीन चिट नहीं दे रहे है. तो जनता को परवाह नहीं हो रही है अभी पिछले दिनों अमूल्य दूध के दाम बड़े तो मदर डेरी ने कहा की वह हाल फ़िलहाल में दूध की कीमत नहीं बड़ा रही है पर मात्र एक महीने में दाम बड़ा दिए. कंपनी तो अपना खर्चा शिफ्ट कर डटी है पर आम आदमी अपना खर्चा किस पर डालेगा? और असंगठित मजदुर की कही सुनाई नहीं दिख रही है?

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