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हमारे समाज की एक और घिनोनी तस्बीर सामने आ गयी की इस शख्स को जानने वाला भी नहीं मिला यह भी घटना उसी शहर की जहां रामदेव का जम्बाडा लगा रहा और तमाम मीडिया पुरे हरिद्वार को घेरे रही राज नेताओ का अबागमन बना रहा साथ ही घटना उस प्रदेश की रही जहां भा जा पा की सरकार पुरे देश में सत्याग्रह का तमासा दिखाती रही और मुख्य मंत्री पुरी सुरक्षा देने के बादे पर अडिग रहे और पुरी दिल्ली उनकी आवाज सुनती रही कहा जाएगा दिए तले अन्धेरा? एक साधू को नहीं बचा सकी?
राजनीत की पहुँच बड़ी है पहिले कहा जाता था की पुलिस के हाथ लम्बे होते है उसका नतीज़ा मुंबई ने देखा एक होनहार पत्रकार का मारा जाना और आज एक साधू जो गंगा बचाओ अभियान के तहत मारा जाना बता रहा है की किसी ने नहीं सूनी उसकी आवाज क्यों मीडिया बोना साबित हो गया क्यों राजनेतिक षड़यंत्र बिखर गया है कोई जवाव?
कल तक तो माया सरकार के मोटे मोटे एड देखे जा रहे थे आज कारनामे देखे जा रहे है की किस कदर एक छोटी उम्र की लडकी से बालात्कार कर मार कर ठाणे में लटका दिया गया बही एटा में तीन लोगो को गोली से भुन दिया और अलीगढ का शहर का बा सपा अध्यक्ष को मार कर नहर में फेक दिया गया रोज़ रोज़ नई नई बारदाते बता रही है की कानून अपना काम नहीं कर रहा है अपराधी मस्त है और सरकार परस्त है
अभी नक्सल हमला में दस पुलिस वाले मारे गए क्या यह ही चलता रहेगा की यह पुलिस वाले भी किसी ना किसी के बाप होंगे उनके भी बच्चे होंगे पर कोई ना सम्बेद्ना ना कोई अफ़सोस रामलीला मैदान में तो रात के बारह बजे आक्रमण हो जाता है और मैदान खाली करा लिया जाताहै और सरकार अपनी पीठ ठोकते नहीं थकती है पर नक्सल बाद के खिलाफ अब तक कोई कारगर नीति काम क्यों नहीं कर रही है माना जाये इस तरह से ही पुलिस मरती रहेगी और राजनीत करने वाले नक्सल बाद को देश की ही भटकी आत्मा बताते रहेंगे सबसे ज्यादा घटनाएं दतेबडा में हो रही है वहा की लोकल पुलिस भी कुछ कर भी रही है या जवानो को मरने के लिए भेजा जा रहा है.
हमेशा से यह ही होता है किसी मसले को इतना लटकाओ की वह खुद ही कमजोर हो जाए तो समझोता तो हो ही जाएगा हर मसले को लटका कर रखने की कोशिश करना देश हित में नहीं है यदि जवान भी यही सोच पाल तो कानून का शाशन तो सिर्फ किताबो में ही दिखेगा स्वामी निगमानंद की मौत बता रही की सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया बरना पूर्व में दी गयी सुचना की उनकी जान को खतरा है को मान लिया जाता तो कम से कम एक गंभीर साधू की जान बच सकती थी साधू समाज भी आगे नहीं आया तो किस पर विश्वास करोगे किस पर नहीं नहीं अब लीपा पोती की नीति शुरू होगी और मामला ख़तम हो जाएगा कुछ समय बाद ना गंगा बचाओ अभियान बचेगा और न नाम?
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