Menu
blogid : 2132 postid : 329

बिडम्बना काश कोई सच दिखाता?

sunraistournews
sunraistournews
  • 104 Posts
  • 59 Comments

देश की बिडम्बना ही कही जायेगी कि देश को सच दिखाने का हौसला किसी टी वी चेनल में नहीं मीडिया में नहीं जो सच के साथ खडा नज़र आया हो ? कोई रामदेव और अन्ना का गुणगान करने में लगा रहा तो कोई सरकार की नीति का बखान करता रहा कोई बीजेपी की तरफदारी करता रहा तो कोई कोंग्रेस की नीतियों को सही साबित करने में लगा रहा साथ ही लम्बे लम्बे एड लेकर खुश रहा तो कोई टी वी की सुर्खिया बनने की लालसा में दिखाई दिया एक बर्ग रामदेव के अनशन को गलत सवित करता रहा तो कोई उसके सही होने के प्रमाण देता रहा पर आखिर कार अनशन टुटा वह एक मानवीय पहलु था वह सही ही कहा जाएगा क्यों की जव राजनीत सो जाती है तब मानवीय सम्बेदना ही काम करती है ?

देश की जनता की साँसे रुकी थी की कही कोई अनहोनी ना हो जाए जिसका परिणाम पुरे देश को उठाना पड़े कहने को तो सरकार अपनी नीति के वखान में पीछे नहीं रही पर हमेशा गलत साबित होती रही उनके नेता उन वियानो को तूल देते रहे जिनका इस मौसम में कोई काम नहीं था एक बात देखी जाती है की जब भी कोई इस तरह के अनशन शुरू होते है तो मीडिया अपने आप को बहुत आगे रखने की कोशिश करती है और उसका उन्हें फायदा भी होता है लम्बे लम्बे ए ड दिखाई देते है जिनकी जरुरत नहीं होती क्यों की अभी कही चुनाव नहीं है पर दुसरे आदमी को गलत साबित करने के लिए सरकार यह समझती है की जनता को दिखाया जाए की सरकार ने उनके लिए क्या नहीं किया और उनसे बेहतर कोई दुसरा कर ही नहीं सकता देश में आजादी का नगाड़ा पीटने वाली सरकार ने रामलीला मैदान में नगा नाच खेला या कुछ निहित स्वार्थी लोगो ने खिलवाया? कुछ लोगो पर केश भी दर्ज किया गया? पर तमाशा तो हुआ जिसे लोक शाही का मजाक ही कहा जाएगा?.

कोंग्रेस के महासचिव बाबा रामदेव पर आरोप लगाते रहे साथ में अपनी सरकार के लिए मुसीबते पैदा करते रहे कारण जो आरोप उन्होंने लगाये वह सही हो सकते है पर कोई सन्यासी या ट्रस्ट रातो रात बन कर तैयार नहीं हो जाता है यदि कोई कानून की अभेलना हुई है भी तो भी सरकार के लोग ही दोषी है क्यों की बिना उनकी मर्जी के पत्ता भी नहीं हिल सकता है जैसा की रामलीला मैदान में हुआ. एक लोकतांत्रिक अनशन को तहस नहस कर दिया फिर साबित किया गया की दुसरा विकल्प नहीं था जब चार चार मंत्री हवाई अड्डे पर अगवानी करते है तो विकल्प खुले है तो कोई कारवाही नहीं होती फिर अचानक निरंकुश शाशन की तरह कारवाही की जाती है और पुरे विश्व को दिखाया जाता है कोई भी आन्दोलन किस तरह से रातो रात कुचला जा सकता है देश ने देखा दमन कारी हाथ जो महिला और बच्चो को भी नहीं छोड़ पाए खेर.
देश में दो तरह की विचार धारा चल रही है एक कोंग्रेस समर्थक और भाजपा समर्थक दोनों की नीतियां एक सी पर लड़ाई लड़ने के तरीके अलग अलग. यदि सोचा जाए तो रामदेव का अनशन तुडवाने में तीसरी शक्ति ने सहयोग किया जो न भाजापा की थी ना कोंग्रेस की और यह ही शक्ति थी जो मानवीयता के नाते जुडी रही और रामदेव को मना लिया गया? इस से कोंग्रेस की बहुत भद्द पिट्टी कियो जिन मुद्दों पर सहमती बन चुकी थी तो उनको लागू करने में क्यों कर देर हो सकती थी साथ ही यह सन्देश भी गया की सरकार हमेशा से करेप्त लोगो को बचाती रही है उसका खामियाजा भी भुगतती रही है इसका उदाहरण तमिल नाडू है ?

सरकार ने रामदेव के खिलाफ जंग खोल दी है सरकार और संगठन बराबर व्यान दे रहा है और एक दुसरे को गलत साबित कर रहा है काश वह गलत होते तो सही था क्यों कोंग्रेस सरकार ने ही उनको पाला पोसा है आज भी जेड रेंक की सुरक्षा दे राखी है अब सोलह जून से देश व्यापी जागरण मंच शुरू करने की घोषणा हो चुकी है पर जुवानी जंग से अच्छा होता की काम की बाते की जाती? अब तो साप जब निकल ही चुका है लाठी पीटने से क्या हाशिल होगा अब तो आप उनको ज़िंदा रखने का ही काम करेंगे? सरकार ने तीन तारिख को जिन मुद्दों पर सहमती जारी की थी उनको अमलीजामा पहनाना शुरू कर देना चाहिए था तो रामदेव की राजनीत खुद ब खुद ख़तम हो जाती बैसे ही आप लिखित में सहमती तो दे ही चुके है अब इस आन्दोलन की काट को जनता के बीच ले चलने की क्या जरुरत है यदि जरुरत है तो जरुर ले जाए क्यों की मुद्दा फिर उभर कर आपका जीना दूभर कर देगा?

कोंग्रेस और सरकार में भी एक दुसरे की काट शुरू हो चुकी है दिग्विजय सिंह जब बोलते है तो यह लगता ही नहीं है की कोई महा सचिव बोल रहा है लगता राजा बोल रहा है और प्रजा सुन रही है जब की उनकी असलियत तो मध्य प्रदेश में दिख ही गयी की जनता में कितनी पकड़ है अब मणि शंकर अय्यर का बोलना भी सरकार के गले की हड्डी है क्यों ठीक राष्ट्र मंडल खेलो के दोरान उनकी व्यान वाजी से सरकार और कोंग्रेस दोनों की ही किरकिरी हुई थी ? बह आज भी ज़िंदा है जनता दो खेमो में नहीं बटी है तीसरा खेमा भी है जो सच की आस लिए है और देश हित में सोचता है उसका कोई मंच नहीं है पर उसकी आमद है जिसने रामदेव का अनशन तुडवा कर साबित कर दिया की वह ही सुप्रीम है देश सरकारों से नहीं चलता उन महान आत्माओं से चलता है जिकी सूनी जाती है ? आज भी में उन महान आत्माओं में श्री श्री रविशंकर की और मुरारी बापू की बात कर रहा हूँ? जिनकी कोशिश से अनशन ख़त्म हुआ लाख लाख बधाई पुनः नमन है जिन्होंने राजनीत के गलिआरे से निकल कर सही मार्ग चुना और एक और शहादत से देश को बचा लिया ?

सरकार के लम्बे लम्बे उबाऊ भाषण और विज्ञापन देश को रोटी नहीं दे सकते और ना मार्ग दर्शन दे सकते है सिर्फ अपना हित साधन किया जा सकता है कोई नजीर पेश नहीं कर सकते चाहे वह किसी भी पार्टी से जुड़े रहे हो उनकी नीतिया एक सी है और दमन एक सा है तो छाप केसे छोड़ सकते है बसपा का १५ मिनट के विज्ञापन देखे होंगे इसके बाबजूद एटा अलीगढ और लखीमपुर की घटनाएं आम हो चली है तो कौन विश्वास करने लगा इनके विज्ञापन पर? सोच को आखिर कब तक अमलीजामा पहनाया जाएगा यही सोच देश में हाबी है या जागरण के नाम पर भटकाव की राजनीत ही चलती रहेगी गिरेवान किसी के भी साफ़ नहीं है तो बिडम्बना ही कह सकते है सच कोई नहीं दिखाता सिर्फ अपने अपने मुद्दे खोजने में लगे है मीडिया और सरकारे तो सच कब आयेगा सामने? यह देश और तीसरी कौम इंतज़ार कर रही है ?

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh