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इन्तजार-ए-सुबह…. ?

sunraistournews
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बहुत दिनों से सुनते आ रहे है कि हर काले अँधेरे के बाद सुबह जरुर होती है हर दम यह कहा जाता है कि हमेशा सत्य की जीत होती है अन्धार्कार के बादल छटते जरुर है पर कब यह नहीं बताया जाता है ? क्या यह पलायन बादी सोच है या हम उन चीजों से भागते है जिन का हमारे जीवन में महत्व है यदि लोग कहते है कि सच्चाई की जीत होती है और फिर भी हम हार जाते है तो क्या कहा जाएगा कि या तो हम सच नहीं थे या झूठ ने सच को दवा दिया. सबेरा करने की लालसा में उम्र निकल जाती है तो उस सबेरे का क्या करेंगे ? कब सबेरा होगा और कौन खुश किस्मत होगा जिनके नसीव में यह सबेरा होगा. दुसरी तरफ यह भी कहा जाता है समय से पहिले और तकदीर से ज्यादा कभी नहीं मिलता?
एक कथा है कि एक तबायफ के यहाँ एक सन्यासी जी पधारे तबायफ ने साधू का खूब आदर सत्कार किया साधू तबायफ के आदर सत्कार से खुश हुए और कहा कि में तुम्हारी सेबा से खुश हूँ तुम एक बरदान मांग सकती हो तबायफ सिर्फ मुस्करा दी साधू ने मुस्कराने की बजह पूंछी तो बोली रहने दीजिये साधू ने जिद की तो तबायफ बोल पडी कि मेने भी धर्म ग्रंथो पडा है कि समय से पहले और मुकद्दर से जयादा कभी नहीं मिलता तो आप बरदान दे कर भी क्या करोगे और में ले कर भी क्या करूंगी ? साधू चुप क्यों कि जवाब साधू के पास नहीं था.
हमने काम, क्रोध, धन, मद और लोभ की परिभाषा भी रामायण में पडी कहा गया कि यदि भक्ति के मार्ग पर चलना है तो इन सभी चीजों दूर रहना होगा तभी भक्ति की उपयोगिता सार्थक हो सकती है दुसरी तरफ यह भी कहा जाता है कि हानि, लाभ, यस,अपयस, जीवन मरण यह सब प्रभु के हाथ ? आप भी सोच रहे होंगे कि आध्यात्मिक बाते कहाँ से लेकर बैठ गया पर बात निकली है तो दूर तलक जायेगी सोच यही है यह सब सार्थक विश्लेषण है जिनका अमल कठिन है बाधाये है उनको ऋषि मुनि भी आत्म सात नहीं कर पाए तो हम तो इंसान है गलतियो की गठरी फिर भी हम प्रबचन में जाते है और अपने कर्मो की गलतियो को मात्र भक्ति से दूर भागने का परियास करते है जानते हुए कि जो व्यक्ति हमें परम पिता परमेशर की उपासना का सन्देश दे रहा है वह क्या इन सभी बाधाओ से दूर है यदि नहीं है तो उसकी बात से हम सहमत क्यों हो गए और इसका ज्ञान उसके पास कहाँ से आ गया मेरा मकसद कतई नहीं है कि किसी बर्ग बिशेष की भावना को ठेस पहुंचे उसके लिए हम पहिले से ही माफी मांग कर चल रहे है हम सब माटी के पुतले है उनमे गलती हो सकती है पर साधू तो जन्म से भगवान् की पूजा अर्चना में लीं है तो उसके पास तो भगवान् का दिया सब कुछ होगा ही अब भक्त को कुछ चाहिए तो शरण में जाना ही होगा. सच है पर कौन मानेगा कि भगवान् अगर सूनी अनसुनी करके ही भक्त की परिक्षा ले रहे है तो कौन रोकेगा उनके चक्र को यही पर तुलसी दास की पक्तिया याद आती है ” पर उपदेश कुशल बहुतेरे” यानी जब सामाज को देने को है तो यह उदाहरन दिए जाते है पर जब खुद पर अमल की बारी आती है तो मुकर जाते है. करोड़ भक्त है भगवान् को मान ही जाना चाहिए पर भगवान् भी उन्ही की सुनता है जो समर्थ है. और समर्थ कुछ भी देकर भगवन को खुश कर ही देता है जब कि एक कंगले के पास पांच रूप भी नहीं होते कि वह चदावा चदा सके तो भगवान् क्यों कर उस कंगले से खुश हो सकता है पुजारी भी उसी की अर्चना की अर्जी पहिले लगाएगा जो मोटी दक्षिणा दे कर पुजारी को खुश करेगा. श्रद्धा भाव भी जाग्रति तभी होती है जब जेव में रकम हो या खूब कंगाल है तो यह माना जाएगा कि उसके भाग्य में धन नहीं है और धनवान के साथ यह जोड़ दिया जाएगा कि इस पर लक्ष्मी जी मेहर बाण है तो यह सच है कि हमारे भाग्य में लक्ष्मी है ही नहीं तो पूजा जप ताप करके भी कया करे धनवान चदावा इस लिए चडाता है कि उसके पास और धन आ जाये पर वह धन आने का कोई तो माध्यम होगा या तो खूब मेहनत कर सकता है या किसी को लूट सकता है इसी बात को हम आ म कर देते है तो समर्थक हमें छोड़ेगा नहीं कहने का मतलब साफ़ है कि दोहरी विवसथा के चलते हमें राम राज्य मिल सकता है हमारी सोच किधर जा रही है हम किसी का आदर भी नहीं कर सकते है और कुछ दे भी नहीं सकते है लेकिन फिर भी हम यह कल्पना करते है कि सुबह जरुर होगी केसे ?
सुबह सुबह पूजा अर्चना करना और मनो कामना की लिस्ट भगवान् को दे देना ही हमारा मकसद हो रहा है कुछ लोग शोर्ट कट से धन कमाने में लगे है शोर्ट कट से उनपर भी भगवान् मेहरवान और जो मेहनत करके जीवन को जी रहे है उनका भी भगवान्. यदि कोई जेब कतरा या डाकू भी अपने शिकार पर जाता होगा तो भगवान् का नमन करके निकलता होगा और वह कामयाव हो निकला तो चदावा यदि नहीं तो और मारा गया तो उसकी नियति ही कही जायेगी? हर आदमी में भगवान् है तो गलत काम करने वाला भी भगवान् और सही काम करने वाला भी भगवान् तो क्या फर्क है एक को सजा और एक को मज़ा दोहरी नीति के चलते हर जगह भ्रम है है कोई निदान कभी राहू कभी शनि के प्रभाव से आम आदमी मुक्त ही नहीं हो पा रहा है तो किस पर विश्वास करे समझ से परे है शायद मुक्ति मिल सकती है जब वह इस दुनिया में नहीं होगा? फिर पूजा अर्चना का क्या मतलब? जब आदमी मर जाता है तो अर्थी के साथ चलने वाले बोलते है राम राम सत्य है पर वह तो सुन नहीं सकता और वह खुद शमशान घाट से निकल कर छल प्रपंच करने से बाज आने वाले नहीं तो भी हम कहते है की सुबह होगी राम राज्य आयेगा पर कब ?

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