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देश kee आजादी के बाद देश के भी भगबान बट गए राम की अलग अलग परिभाषा आनी शुरू हो चली जिसने जो चाहां उनको अपने हिसाब से गड लिया जिसको जो पसंद आया उसको उपयोग में ले लिया चलो सही है पर दुसरो पर कीचड उछाल कर क्या साबित करना चाहते हो. गाँधी के राम अलग है भाजापा के राम अलग है मायावती के राम अलग है और अयोध्या के राम अलग है? अब काला धन के राम भी अलग हो चले कोंग्रेस के अलग और हमारे गरीव के राम अलग है तो किस राम की पूजा की जाये यह सवाल परेशां कर रहा है यदि किसी के राम ना माने तो वह नाराज़ हो जाता है और माने तो दुसरा नाराज़ हो जाता है. ऐसे में किस पर विश्वास कर के चले दुबिधा में है?
गाँधी हमेशा गाते थे रघुपति राजा राम तो उनके राम गरीव और अछूत निम्न बर्गीय तबका आता था उसके राम मंदिर के नाम पर भाजापा के राम आये जिसने राजनेतिक मंच से उद्घोष कर अयोध्या में डर और खौफ का माहोल बना दिया फिर आये बहुजन के राम जिनकी मुर्तिया आज हर बड़े पार्क में सज रही है साथ में माया मेमसाब की भी सज रही है साथ में हाथी भी सज रहे है अब राम देव नए राम बन चुके है जिनको नया अबतार बताया जा रहा है पूरा देश और विशेषकर युवा पीडी मोर्चा संभाले है कि उनकी बात से अलग सोच वाले लोग उनके निशाने पर होते है उनको तरह तरह से भला बुरा कहा जाता है. उधर सरकार का नजरिया भी साफ़ नहीं है क्यों की वह ही हीरो बनाती है फिर उनको मिटाती है पर जब एक पेड़ लगाया जाता है तो फिर बड़े होने पर उसके बजूद को ख़तम करना भी चाहे तो ख़तम नहीं कर सकती चाहे कोई भी सरकार क्यों ना हो देश की सहानुभूति उसे मिल ही जाती है राम के बटबारे ने और कुछ दिया हो ना दिया हो पर आक्रामकता जरुर दे दी है.कल ही एक ब्लॉग पर गया था वह पडा तो सच के नजदीक था पर नजरिया जरुर एक तरफ़ा था उस पर कोमेंट भी आये दो कोमेंट को देख कर दंग रह गया एक आदमी को बुरा भला कहना तो सही लगता है पर पुरी कौम को पागल कह देना साहित्य की नहीं पुरे समाज पर दाग है. कौन कह सकता है की यह एक साहित्यक मंच है पर टीम लीडर ने भी आगाह तो कर दिया पर साहित्य से वह शब्द हटाये नहीं गए जिससे यह सन्देश जरुर गया की टीम कितनी तत्परता से काम कर रही है और समाज और ब्लॉग के लेखको कितना सम्मान दे रही है कुछ दे सकने के काविल नहीं हो तो कोई बात नहीं पर इज्ज़त करना तो मत भूलो? दो विचार हो सकते है मतभेद भी हो सकते है पर शब्दों के बाण कभी कम नहीं होते है जब पुरी कौम को गाली दी जाए? यदि इस तरह से पुरी कौम पर आक्षेप लगेगा तो कौन इस साहित्यिक मंच से जुड़ेगा ?
रही बात सच्चाई की तो बह जग जाहिर है जब कोई आदमी कोई बड़ा काम करता है तो उसके आलोचक और समर्थक दोनों ही बड़ते है उसमे बुरा मानने की बात क्या है ? जिस मुद्दे पर जितने ही अधिक प्रित्क्रिया आयेगी वह उतना ही शक्तिशाली ब्यक्ति होगा. आज रामदेव की प्रशंशा और आलोचना दोनों ही हो रही तो उनका व्यक्तित्व निखरेगा और जो गलतियां वह कर चुके है उनसे प्रेणा लेकर भविष्य में वह गलती ना दुहराएंगे?
रामदेव का स्वास्थ गिर रहा है और उनको आन्दोलन ख़तम करने की सलाह भी दी गयी है पर वह मानेगे नहीं क्यों की यह उनका हठ योग है नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने उनके हाल चाल लिए और उन्होंने यह भी कहा की बाबा रामदेव तन से कमजोर हो रहे है पर मन से आज भी कठोर है इसका मतलब क्या निकाला जाये की एक तरफ तो अन्ना टीम राजघाट पर बेठी आपके आन्दोलन का पक्ष रख रही है तो दुसरी और आप सुषमा स्वराज से करीव दो घंटे एकांत मीटिंग कर रहे है वही पर दो प्रेस कोंफ्रेंस हो रही है उसमे अपना रुख स्पस्ट किया जा रहा है दुसरी और भाजापा ९-११ जून को आन्दोलन पुरे देश में ले जा रही है साथ बाबा खुद एक स्वाभिमान सेना बनाने की घोषणा कर रहे है जो शास्त्रों से लेस हो? क्या इस बात की आलोचना नहीं होगी की एक सामाजिक संगठन की सोच कहाँ जा रही है फिर एतराज जताया जाएगा कि देश भक्ति पर शक किया जा रहा है या हिन्दू संगठन का साथ नहीं लिया जा रहा है में गलत भी हो सकता हूँ पर देश की मीडिया भी तो यही पूंछ रही है कि हिन्दू संगठन की क्या जरुरत महशुस हो रही है यदि वह इस लड़ाई को अकेले लड़ना चाहे तो क्यों नहीं लड़ सकते? क्यों बाबा को बीच में घसीट रहे है?
सुबह अरविन्द केजरीवाल का अबाहन अच्छा लगा कि कोंग्रेस जब पूंछती है कि आयोजन में पैसे कहाँ से आये तो पाहिले भाजापा और कोंग्रेस भी बताये कि पार्टी चलाने के लिए पैसे कहाँ से आते है और अपनी पार्टी का खाता भी शो करे? तब यह सन्देश अवश्य गया होगा कि उनका व्यान मात्र एक दल के लिए नहीं दोनों के लिए है जब हम किसी नेता को मंच से सुनते है तो लगता है कि वही सही है वाकी सब झूठ है पर सच्चाई इसके विपरीत होती है.
एक टी वी चेनल पर भाजापा अध्यक्ष इंटरव्यू दे रहे थे कि कोई हमसे समर्थन मांगता है तो देंगे यदि नहीं माँगता है तो हम खुद चल के उनके पास नहीं जायेंगे ? तभी सुषमा स्वराज का हरिद्वार पहुँचना क्या लगता है कि बाबा ने बुलाया होगा या खुद ही गयी होंगी ?बाबा ने पिछली गंभीर घटनाओ से सबक नहीं लिया है बरना इस तरह के कदम उठाने से पहिले अपने पूर्व सहयोगियो से मश्बरा जरुर कर लेते? कोंग्रेस तो खुल कर आरोप लगा ही रही है कि बाबा ने मुखोटा पहिना है. और उसके परिणाम भी देख ही लिए है मीडिया सब कुछ बता देता है पी पी पी का अर्थ क्या है यह लोग ही लोगो जागरूक बनाते है और बिगाड़ते है सोच जैसे कुछ लोग पहिले भी कहते रहे है अब भी कह रहे है कि वह बोले तो सच दुसरा बोले तो झूठ यह तो नहीं हो सकता. जब कोई चीज़ आखो के सामने से गुज़र रही है तो विश्वास केसे ना किया जाए? इस तरह से तो राम राम करना ही बेहतर विकल्प हो सकता है कि दुसरो की ना सुनो अपनी बात थोप दो. कोई मान ना मान में तेरा मेहमान. अन्ना का सुपर हिट अनशन लगभग ख़त्म हो चला क्यों कि स्पस्ट नीति का पालन कर लिया है और मंच को राजनेतिक रंग नहीं दिया है यही कारन है कि दोनों डालो के अलाबा तीसरे तबके का सहयोग भी मिला है और मिलता रहेगा क्या कोई अन्ना को देश द्रोही कह सकता है तो सफल तो हो ही जायेंगे?
जय हिंद जय भारत.
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