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“में समय हूँ’ और मेने जाने कितने आन्दोलन देखे है जंतर मंतर और रामलीला मैदान इसके गवाह है कुछ तो रसातल में पहुँच गए और कुछ जाने को तेयार है देश ने कितने सपूतो की कुर्वानी दी है आज़ादी के लिए और सत्ता परिवर्तन के लिए पर परिवर्तन का सपना सपना ही रहा है अब तक ? यह लाइने सुन कर लग रहा होगा कि वास्तव में समय ही हूँ पर धोका है धोका शव्द का जन्म ही हुआ देने के लिए जनता को दे या अपने आप को. लोग इसे देने के लिए ही जन्म लेते है और यह सन्देश देते है कि वह जनता के बन्दे है.
जिस देश की सरकार इमानदार ना हो तो जनता कैसे ईमानदार हो सकती है जनता में लगभग ९९ फीसदी लोग आते है जनता की इमानदारी की कहानी शुरू करू उससे पहिले मुझे हेलमेट पहन लेना चाहिए क्यों कि कोई भी पत्थर आकर मेरे सर को चूर कर सकता है और में शहीद भी हो सकता हूँ वह बात अलग है कि मेने इतने पैसे नहीं जोड़ पाए है कि कोई स्मारक बना कर लोगो को बता सके कि सच बोलने की सज़ा क्या हो सकती है ?
एक बाकया याद आरहा है जोक ही है गंभीरता से मत लेना ‘ एक पागल खाने का निरीक्षण करने एक बहुत बड़े नेता गए तो सभी कैदियों से उनका परिचय कराया गया कहा गया कि अमुख राज्य के सी ऍम है तो पागल कैदी से रहा नहीं गया और वह बोल ही पडा यहाँ आने वाला हर आदमी यही कहता है कि वह सी ऍम है ? कुछ दिन बाद हमारा दोस्त बन ही जाता है ‘ बात चल रही थी कि रामलीला मैदान और जंतर मंतर देश की राजधानी की वह धरोहर है जहां सत्ता परिवर्तन के लिए बिगुल फुके जाते है और सत्ता परिवर्तन के दर्शन दुर्लभ हो जाते है इस देश की यही परपरा रही है कुछ दिन हीरो फिर जीरो याद कीजिये १९७७ के दिन जव आपातकाल लगा को सत्ता परिवर्तन के लिए शायद यही से बिगुल बजा और सत्ता से इंदिरा गाँधी की विदाई हुयी. बोफोर्स कांड में भी रेल्ली यही से शुरू हुई वारी आयी बी पी सिंह की फिर अनगिनत रेली का गवाह रहा है यह मैदान? आओ इको नमन कर ही le शायद कब जरुरत पड़ जाये में हर शख्स को सलाम इसलिए कर काके चलता हूँ ना जाने किस मोड़ पर कारगर सिद्ध हो जाए ? मीडिया की नीति है अमल करना भी जरुरी है ?
अभी दो महीने पूर्व ही अन्ना का अनशन हुआ और सरकार को मुह की खानी पडी लोगो का पूर्ण समर्थन अन्ना के साथ था और विजयी भाव के साथ समापन हो गया जीत के लिए ठोल नगाड़े बजे खुशिया मणी पर कुछ ही दिनों में सब ठंडा पड़ गया? क्यों कि सरकार ने अन्ना की जिद मान ली और समाधान भी उनके अनुरूप ही करदिया? कल ही अरविन्द कजरी वाल कह रहे थे कि कोर कमेटी में बन नहीं रही है ड्राफ्ट से पी ऍम को और न्याय पालिका को वाहर रखने के लिए दवाव बन रहा है अब इसी आन्दोलन को आगे बदाया जाना था पर एक अलग आन्दोलन की भूमिका सामने आ रही है अन्ना की ड्राफ्टिंग कमेटी से रामदेव को पहिले ही शिकायत थी कि दो लोग एक ही परिवार के नहीं होने चाहिए थे इसका मतलव रामदेव से विना पूछ कर के नाम सुझाये गए दुसरा सी डी प्रकरण में शांतिभूषण और प्रशांत भूषण के नाम जान बुझ के उछाले गए जिस से जनता का भरोसा टूटा और अब रामदेव जी भी चार जून को जंतर मंतर की और कुच करने को तेयार है जन समर्थन उनके साथ है साथ ही बीजेपी के नेताओ का भी भरोसा उनके साथ है हिन्दू संगठन भी खुले आम उनके साथ है तो मीडिया कब पीछे रहने वाला है यह आन्दोलन अन्ना के खिलाफ है या समर्थन में यह कहना मुस्किल है पर हासिये पर गए लोग पुनः चमक दिखाने को बेताब है सरकार डरी है पुलिस डरी है पर सब बिभाग बेखोफ अपना काम कर रहे है उनके ऊपर इस तरह के आन्दोलन का असर नहीं दिखता क्यों वह सर्व ज्ञानी है उन्हें पता है कोई भी आये उनका बाल बांका नहीं बिगड़ सकता क्यों कि उन्हें पता है कि उनकी जड़े मजबूत है और इनकी देखभाल भी जनता ही करती है?
तो उनका क्या बिगड़ेगा जनता खुद ही इमानदार नहीं है नेता खुद इमानदार नहीं तो इन विभागों को कोई खतरा नहीं?
अन्ना के साथ साथ अग्निवेश और किरण बेदी साथ हो सकती है पर पूरा गुट था वह कमजोर हुआ है कारण अन्ना के आन्दोलन के बाद नितीश की और मोदी की तारीफ करके अन्ना साहिब ने इस आन्दोलन को कठिनाई में डाल दिया जनता किसी भी दल समर्थक हो सकती है तो जरुरी नहीं था कि किसी का नाम लेकर तारीफ करना एक गुट का आन्दोलन बना दिया?
एक बार राजीव जी के समय में कोई बिदेशी मेहमान भारत आया उसने ताज महल देखने की इक्च्चा जाहिर की तो उसकी रगाई पुताई कराई गयी पर एन मौके पर उसका ताज महल जाना रद्द हो गया अगले ही दिन कार्टून अखवार में आया कि कोई आये या ना आये कम से कम ताज महल तो साफ़ सुथरा हो ही गया? यही देख कर लग रहा है कि कम से कम आन्दोलन किसी का हो पुलिस और मीडिया की कसरत तय है वह होनी भी चाहिए? वैसे भी एक कोर कमेटी और बन सकती है जो तीन महीने में रिपोर्ट दे देगी ? हो सकता है कि अन्ना के आन्दोलन की काट यही से शुरू हो क्यों कि विभाजन तो हो गया.जो सरकार का मकसद होता है क्यों कि सरकार और कोर्ट दोनों ही काम कर रहे है काले धन के लिए? जव देश का काला धन ही सरकार नहीं निकाल पा रही है तो विदेशी तो बहुत मुश्किल है क्यों कि विदेशी सरकारों से किये गए समझोते आड़े आयंगे दुसरे जब बीजेपी शाशित राज्यों ने समर्थन की घोषणा कर ही दी है तो भीड़ तो हो ही जायेगी? मुद्दा एक और लड़ने वाले दो जरुर हो गए यदि अब की बार भी जनता के साथ छल हुआ तो कभी माफ नहीं करेगी और ना इस तरह के आन्दोलन के लिए जोश पैदा कर पायगी? तो चलिए कहाँ जंतर मंतर क्यों चार दिन की दूरी पर एक और आन्दोलन की रचना हो चुकी है उनका भी अंजाम देखना है क्यों कि में ने शुरू में ही कहा कि में समय हूँ इंतजार करना मेने सीख लिया है देश में “सौ में से निनायांबे बेईमान फिर भी मेरा देश महान ”
एक लाइन किसी शायर की,
मौत का दिन मुकरर है
” कफ़न ना डाल मेरे चेहरे पर……
इंतजार अभी बाकी है ”
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