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लो आ गए नतीजे ?

sunraistournews
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बिगत लगभग दो महीने से चल रही अटकले आज समाप्त की और है कोई अचरज नहीं हुआ जैसा सोचा जा रहा था बही हुआ. पश्चिम बंगाल में ममता का जादू कुछ समय से चल रहा था वही तूफ़ान बन कर उठा और माकपा को उड़ा ले गया कितना चिल्ला रहे थे कि परमाणु डील यूपीए उखाड फेंकेंगी जनता पर हुआ उलटा जिस तरह से सोमनाथ दादा को पाट्री ने निकाल फेंका उससे यही सन्देश गया कि जिस सोच को लेकर यह पार्टी सत्ता में पिछले ३४ साल बनी रही वह अपना मूल काम भी नहीं कर सकी. मेने भी कई बार इनके नेताओ से पूछा कि इतनी अच्छी नीतिओ के चलते तो पुरे देश में आपका राज्य होना चाहिए था. पर कुछ स्टेट में सिकुड़ कर रह जाना पार्टी की नीतिओ की हार है जवाब हमेशा गोल मोल मिला पर आज जब जनता ने सत्ता से निकाल फेंका तो आत्म मंथन की बात सामने आ रही है.
उधर जय ललिता को तो सत्ता मिलनी ही थी सबसे बड़ी बात यह कि करुना निधि की पार्टी की लुटिया डूब गयी लग भी रहा था कि जिस तरह से टेलीकोम घोटाला सामने आया उससे उनकी पार्टी की छवि सुधारनी नहीं थी साथ ही सरेआम केंद्र सरकार को ब्लेक मेल करनी की धमकी आती रही और लोगो में यही सन्देश गया कि यह छोटी पार्टी ही मैन दल में रह कर भ्रष्टाचार को जनम दे रही है चूँकि यह डी ऍम के कोटे से मंत्री थे तो पूरा दारोमदार उन्ही को झेलने थे. कभी कभी केंद्र सरकार के मंत्री कहते भी सुने गए कि केंद्र सरकार की गठबंधन की मजबूरी है जग जाहिर है की ब्लेक मेल सहयोगी दलों के लोग ही कर रहे है इस बात पर ए न सी पी के नेताओ ने विरोध भी किया पर हकीकत से मुह मोड़ा नहीं जा सकता.
केरल और असम का भी सटीक परिणाम आये जिसकी उम्मीद थी.
अब आत्म मंथन का दौर शुरू होगा जनता और मीडिया ने कितना शोर मचाया कि करप्सन और महगाई पर लगाम लगाने में अस फ़ल रही सरकार की इन राज्यों में वापिसी कैसे हो गयी कभी इंदिरा जी की नीति थी कि छोटे दलों से बच के रहो या उनको बढावा ना दिया जाये पर सोनिया गांधी की उलट नीति कि छोटे दलों की वैशाखियो के विना सर् कार नहीं बन सकती पर अमल किया. मुख्य पार्टी सहयोगी पार्टी बन गयी जीत तो हो गयी पर उनका बजूद हमेशा के लिए पुछ्लाग्गे के रूप में हो गया. फाइदा तो केंद्र को होगा ही पर नीतिगत परिणाम गलत हो गए. जब एक स्टेट में कार्यकर्ता जी तोड़ कर पांच साल मेहनत करता है और आखिर में पता चलता है कि पार्टी ने कुछ पार्टी से चुनावी तालमेल कर लिया है तो वह फिर किधर जाए यदि पार्टी के कानून के तले चलता है तो जो जमीन बनाई है अपने लिए वह बेकार जायेगी क्यों कि जीतने वाला कभी सीट खाली नहीं करेगा? तो वह दुसरी किसी ना किसी पार्टी में चला जाता है ?
तमिल नाडू में सरकार ने हार कर भी जीत हाशिल कर ली क्यों कि डी ऍम के को कमजोर करके जय ललिता से हाथ मिला सकती है टेलीकोम स्केम में जय ललिता ने खुला समर्थन कर दिया था सो अब करुना निधि आँख दिखाने से बाज़ आ ही जायेंगे? उधर सरकार भी दुसरे विकल्पों में जय ललिता को बरीयता दे सकती है राज नीत में कोई किसी का दोस्त नाहे कोई किसी का दुश्मन नहीं है इसका उधाहरण झारखण्ड है. सभी अखबार और टी वी न्यूज़ चेनल ने चिल्ला चिल्ला कर कहा कि अब जो भी चुनाव होंगे यु पी ए हारती जायेगी और विपक्ष को मौक़ा मिलता रहेगा कि सरकार का प्रधान मंत्री कमजोर है और सरकार हर मुद्दे पर विफल रही है.
चिंता का विषय यह नहीं है कि यूपीए की जीत कैसे हो गयी जब कि विपक्ष पुरी ताकत झोंक चुका था और अन्ना हजारे ने खुला युद्ध छेड़ रखा था पर जीत फिर भी हो गयी इसका सीधा सादा असर यह ही कह सकते है उन राज्यों में परिवर्तन की आंधी आनी ही थी पर चावी फिर केंद्र के पास रही बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की भी लुटिया डुव गयी यानी जनता का विश्वास अभी भी सोनिया ग्रुप पर है और अभी केंद्र सरकार को कोई ख़तरा नहीं है. राज्यों में क्षेत्रीय दल जिस तरह से उग रहे है उनसे मुख्य पार्टी का बजूद कही खो ना जाए.
अब बारी उत्तर परदेश की है यदि पुरे समीकरण इसी तरह से गए तो माया सरकार को जाना ही होगा पर आयेगा कौन जो अपनी जमीन खो चुके है जिस तरह केशरी नाथ त्रिपाठी ने बीजेपी का धरातल खोखला किया अब तक बजूद नहीं मिला यही हाल कोंग्रेस का था कि मुलायम सिंह ने जिस तरह से कोंग्रेस के टुकड़े करके कमजोर किया कि आज तक उठने की हालत में नहीं है आज कोंगेस से समझोता करने की बात करते है. उधर जब माया मेमसाब सत्ता में आयी तो सोनिया की दोस्त बन कर आयी पर थोड़े ही समय बाद उनकी नियत में बदला झलका कई मीटिंग सोनिया और राहुल की नहीं होने दी. अभी ताजे घटना क्र्म भट्टा पारसों की घटना में उन्होंने राहुल और दिग्विजय सिंह अमर सिंह की एंट्री तो होने दी पर भा जा पा, सपा और अजीत को रोक दिया कया सन्देश जाता है कि फिर पहल होगी कि कोंग्रेस से हाथ मिलाया जाये या तगड़ी दी जाए राजनीत में कोई किसी का दुश्मन नहीं है कटौती प्रस्ताब में बी एस पी समर्थन कर चुकी है एसपी भी समर्थन कर चुकी है पर कोंग्रेस को सोचना होगा कि जमीन की लड़ाई में यदि कार्यकर्ता टूट जाता है तो वह कही ना कही दुसरी पार्टी में चला जाएगा?
तमाम बड़ी पार्टीस को यदि अपना दल बचा कर के रखना है तो सहयोग की नीत पर तो चल सकती है चुनावी तालमेल आपकी पार्टी को खा जाएगा देश जनता दो पार्टी सिस्टम को लागू करना चाहती है तो तालमेल स्वम के लिए घातक है और देश के लिए भी क्यों कि ब्लेक मेल करना यह नहीं छोड़ेंगे? राहुल बाबा को यदि उतर प्रदेश में अपनी साख बचानी है तो युबा चेहरा और इमानदार चेहरा देना होगा तभी चुनाव की बेतारनी पार हो सकती है धुल मूल रबैये से तो साख गिरती जायेगी फिर यह सोचने का भी बखत नहीं रहेगा की २२ ऍम पी के हिसाब से १४० एम एल ए होने चाहिए?

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