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गत कई बर्षो से फर्रुखाबाद की सर जमीन से नाता लगभग टूट चुका है जिस तरह से परिवार ने और समर्थ लोग ने सहयोग करने से हाथ खींचे तो गाँव से पलायन करना पडा. बैसे ही शहर की कल्चर में पडा लिखा इंसान एक एक इंच जमीन के लिए तो लड़ाई कर नहीं सकता ना ही हर रिश्ते को तिलंज़ली दे सकता है पदाई शायद नौकरी ना दिला सके पर लोगो के बीच उठाना बैठना जरुर सिखा देती है जनम से ही बाहर की अबो हबा पला में हर रिश्ते की अहिमियत मान कर चलता था मदद के लिए हाथ हमेशा उठ जाते थे जितना समर्थ हो सकता था पदाई के बाद जब मैनपुरी में अपने पैर ज़माने के लिए कोशिश की तो पैर जम नहीं पाए पर पत्रकारिता का शौक जरुर पैदा हो गया. और उसी का नतीज़ा है की राजनेतिक विश्लेषण और समिस्यो पर खुल कर लिखने की कोशिश की कामयाबी तो नहीं मिली पर मंच मिल गया जो सभी नेता नगरी से ऊपर है.
में कथानक से बहक रहा हूँ अभी हाल ही मै अपने जनपद गया तो एक तर्रकी की झलक दिख गयी झलक इसलिए कह रहा हूँ की पूरा जनपद घूमना मेरे लिए जरुरी नहीं था कुए का मेदक हूँ तो कुए से ही मतलब है जो मेरा जनपद है वह मेरा ही गाँव है क्यों की जनपद की पुरी राजनेतिक ताकत मेरे गाँव में ही है. पुरे समय के काल चक्र को निमतः लिखा जाये तो पुरी राजनेतिक ताकत यही पर रही है एक छोटा सा गाँव धीरपुर जहां से ऍम एल ए और ऍम पी पैदा हुए है
शुरू के सालो का लिखा जोखा देखा जाये तो याद है मोहम्दाबाद ऍम एल ए सीट से बिध्याबती राठोर बिधायक बनी बुआ जी के नाम से परिचित इनका मायका खिमसेपुर था. पुरे क्षेत्र की जनता उनको बुआ जी के नाम से जानती थी और अपनी बेटी की तरह से पुजती थी उस समय वह मंत्री भी बनी.
उसके बाद बुआ जी ने अपना उत्तराधिकारी स्वर्गीय अवधेश सिंह को बनाया वह भी कांग्रेस के टिकट पर जीत गए और १९७१ में सांसद बन गए.
१९७७ के चुनावो में हार उसके बाद संतोष भारती और चन्द्र भूषण जी ने इस क्षेत्र की बाग़डोर संभाली और वह तीन बार सांसद बन कर उभरे. १९८४ में खुर्शीद आलम खान जो सलमान खुशिद के पिता थे संसद में गए. इन नामो को में इसलिये गिना रहा हु की इनका सहयोग इस क्षेत्र के विकाश में होना चाहिए था पर स्व विकाश के चलते क्षेत्र आज भी विकास के मार्ग पर नहीं दौड़ पाया. १९८४ में इसी क्षेत्रा में हवाई पट्टी की शुरुआत की पर याद नहीं इस हवाई पट्टी का इस्तेमाल हुआ है भी की नहीं. सड़को और पुलों की बाड आनी चाहिए थी १९८४ में ही खुर्शीद आलम खान जी ने एक ट्रेन दिल्ली से फर्रुखाबाद चलवाई जिसका मुख्या उद्देश्य था पर उसके बाद कोई नै ट्रेन नहीं चालू की गयी. संकिसा जो एक बौध धरम का तीरथ है उसको विकशित किया जाए और विदेशी शैलानियो को आकर्षित किया जाए पर इस क्षेत्र के विकास ना के बराबर है.
संकिसा की दूरी पखिना स्टेसन से मात्र ५-६ किलोमीटर की है पर उबड़ खाबड़ सडको की कहानी कहता यह क्षेत्र आज भी विकाश की बाट जोह रहा है मेन रास्तो से देखा जाए इटावा फर्रुखाबाद मार्ग के बीच धीरपुर चोराहे से १५ किमी एटा फर्रुखाबाद मार्ग पर अलीगंज से २२ किमी जीटी रोड भोगाव से २५ किमी की दूरी पर है पर हर मार्ग विकशित नहीं है ना सवारिओ के आवागमन की स्मूथ विवसथा है हिन्दू तीरथ और मुस्लिम तीरथ के विकाश की सरकार हरसंभव कोशिश करती है तो इस बौद्ध धर्म के विकाश के लिए कोई पैकेज की विवसथा क्यों नहीं करती है जो प्रदेश की आमदनी का रास्ता भी खोलती है एक छोटा सा कस्बा को यदि सरकार चाहे तो पर्यटन के रूप में खोल सकती है और जिसका फायदा क्षेत्र के विकास में मिल सकता है साथ ही रोज़गार के अवसर भी पैदा हो सकते है .
स्व हित में लगे नेता कभी भी अपने हित से ऊपर देख नहीं सकते चाहे बीजे पी के हो या कोंग्रेस के या सपा के दबा दबा इस क्षेत्र में इन्ही का होता है और सत्ता में आने के लिए जी तोड़ करके सत्ता तक तो पहुँच चाहिए पर काम कौन करवाएगा यह पता नहीं होता. चुनावी बिगुल बज चुका है हर पार्टी अपना उम्मीद बार घोषित कर चुकी है क्या फर्रुखाबाद की जनता उन्ही पुराने ठर्रे पर चलेगी या अन्ना बादी नेता का समर्थन नहीं करेगी यह सोच आज हर जनपद में जाने की जरुरत है अन्ना बादी नेता के पास गाडी बँगला और पैसा नहीं होगा पर यदि परिवर्तन करना है तो उसके लिए एक काम जरुर करना होगा जो जनपद और देश की भलाई का काम कर सके नया विधायक चुने जो बात में नहीं काम में विश्वास रखे जय भारत जय हिन्दुस्तान मेरा भारत बने महान.
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