- 104 Posts
- 59 Comments
एक जमाना था कि महा संत रहीम दास जी ने कहा कि ” रहिमन निज मन की व्यथा मन में रखिये गोय, सुन ईठ लये लोग सब बाँट ना लये कोई”
समय गुजरा और पुराने लोगो को भ्रम था कि शायद रहीम दास ने सही ना कहा हो? यह भी मान्यता थी कि दुःख को साथी में जिक्र करने से दुःख हल्का जरुर हो जाता है अगर यह सच ना होता तो लो मातम पोसी में इतने लोग क्यों जाते. समय चक्र चलता है पीडी दर पीडी मान्यताये बदलती है अभी हॉल ही में सत साईं का निधन हुया मुझे भी बुरा लगा शायद आँख में कई बार आंशु भी आये पर यह सोच कर मन को रोक लिया कि में नहीं पातुपुर्थी जा सका तो कोई बात नहीं हमारे नेता तो मौजूद है ही. हर बड़ा नेता पहुंचा हर बड़ा नेता कंही ना कंही साईं से जुड़ा रहा हमारे जैसे लोग यदि नहीं पहुच सके तो कोई बात नहीं १६७ देशो के लोग उनके दर्शन करके तर गए होंगे?
मीडिया ने साक्षात दर्शन करा ही दिए उनका धन्यबाद क्यों कि राजकीय योग संत को आम आदमी तक पहुंचा दिया. एका एक साईं के निधन के समाचार ने जन मानस को हिला जरुर दिया. भले ही वह ४० हजार करोड़ की रियासत अपने उत्तराधिकारी को सौप गए पर एक जटिल प्रशन मन में गूंज रहा है इतनी बड़ी रियासत के मालिक साथ क्या ले गए? सब यही रह गया और झगडे की नीव पद ही गयी कि उत्तरा धिकारी कौन होगा? जिस शान से उनकी विदाई हुयी लगा कोई राजनेता चल बसा. तिरंगे ने उनकी शान में चार चाँद लगा दिए और २१ टॉप की सलामी यह अहसास जरुर दिला रही है भारत ने एक बड़ा सपूत खो दिया ?
मीडिया में खबर आने के बाद से हर चेनल पर साईं की याद और उनसे जुडी घटनाओं का व्योरा दिया जाता रहा किसी ने उन्हें श्रधा सुमन अर्पित किये तो किसी ने उन्हें जादूगर की संज्ञा दे डाली बड़ा दुःख होता है जब उनके द्वारा किये कार्यो की अनदेखी होती है. हर शक्श इतना महान नहीं हो सकता कि उनका डंका १६७ देशो में बज रहा हो और ४० हजार करोड़ की रिहासत बन जाये. कुछ तो खास रहा होगा पर सब झूट गया? सचिन को रोते देश मन भारी हुआ पर यह सोच कर मन को मार लिया कि सचिन और अडवानी उनके मुरीद बन कर ही शोक मना रहे है उनका हित साधन हुआ है तो मन तो दुखी होगा ही?
देश में कुछ भी सही नहीं हो सकता यह भी देश की परम्परा है उनकी मौत पर भी सवाल उठ रहे है. शुरू में ही एक निजी न्यूज चेनल बार बार कहता रहा कि बाबा ने ९६ साल की उम्र में समाधि लेने की भविष्य बानी की फिर ८५ साल में कैसे मर गए. उधर आग पर घी का काम किया बंगाली लेखिका तसलीमा ने कि यदि भगवान् थे तो मर क्यों गए.? लोगो को क्या कुछ भी कहने से नहीं चुकते पांच से छेह लाख की भीड़ यु ही नहीं इकट्ठी नहीं हो सकती. कुछ तो ख़ास रहा होगा इस महान युग पुरुष में ?
अब चूँकि साईं बाबा नहीं रहे तो उनकी समाधी ही यादगार बनकर आशीर्वाद दे सकती है और इस परम्परा का निर्वाह भी होगा और उनके भक्त भी बढेंगे. मंदिरों का भी विकास होगा और उनकी मुर्तिया अब अन्य मंदिरों में भी दिखेंगी. वैसे इतनी बड़ी रियासत की जरुरत क्या थी मूल प्रशन आयगा. माना कि उनके संसथान जन हितार्थ कार्य कर रहे है पर भक्ति में काम क्रोध मद लोभ का जिक्र आने से भक्ति कैसे हो सकती है हमारा दर्शन यही कहता है आलोचक यह भी कहते है कि यदि आपके पास पैसा है ही नहीं तो जन सेवा कहाँ से कर सकते हो अपने खाने के लाले पड़े हो तो दुसरो को भोजन और बस्त्र कहाँ से दे दोगे प्रशन सटीक है जब कोई इमारत बनती है तो पहिये नीव के लिए गहरा गद्दा किया जाता जितना गहरा गद्दा उतनी मजबूत इमारत?
आज नहीं तो कल यह प्रशन जरुर आयेगा कि एक लाख का ताबूत खरीदा गया साईं संसथान ने वह भी उनकी म्रत्यु से २० दिन पहिले अंतिम संस्कार के पहिले ही उनको आभास था कि इसकी जरुरत पद जायेगी. तमाम बेदिक रीतियो से उनका साथ छूटा अब कोई और नया साईं जनम लेगा और जन कल्याण के काम करेगा? हम सनातन धर्मी लोग यह विश्वास करते है कि समय चक्र चलता ही रहता है.
भगवान् भी बट चुके है गरीव के भगवान् और अमीर के भगवान् नेता के भगवान् और अभिनेता के भगवान् पूंजी पति के भगवान् निरीह जनता के भगवान् जब कि मान्यता है कण कण में उनका अंश है पर यह मन बहलाने के लिए है वास्तब में जो दिखता है क्या बही सच है या मन जो कहता है वह भगवान् है? आज भी हमारे समाज में कितने ही लोग है जिन पर प्रभु कृपा है पर उनकी हर चीज़ मात्र बिजनिस है किसी चेनल पर कोई लाल किताव बेच रहा है तो कोई कबच सिर्फ अपने लिए? हर आदमी परेशां है तो कही ना कहीं तो शरण लेगा ही. शरण लेगा तो दान देना ही पडेगा चाहे जेब में रकम हो या ना हो.
आज की आवाज यह ही है कि “साईं इतना दीजिये जा में कुटुंब समाय में भी भूखा ना रहू साधू ना भूखा जाय” सोच बढानी होगी तभी अन्ना जी कामयाब होंगे बरना समाज में परिवर्तन की बात बेमानी है
Read Comments