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आखिरकार जीत गए अन्ना जी ?

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बिगत ९७ घंटे चली भूख हड़ताल ने सरकार के कान खोल दिए और सरकार को मानना पड़ा की अन्ना जी सच के राहगीर है और अहिंशा के पुजारी है देश की जनता ने सरकार को मजबूर कर दिया है की जन लोकपाल विधेयक बनाने की प्रिक्रिया शुरू करनी पडी. चलो देर आये दुरस्त आये. गांधीवादी नेता की छबि लेकर उतरे अन्ना हजारे को हर तबके का समर्थन मिला और जोश से मिला जिससे सरकार के हाथ पैर फूल गए लग रहा था की दुखती नवज अन्ना जी ने पकड़ कर ली है सांप छछूदर का खेल हो रहा है सरकार से लेकर विपक्ष तक को एहसास था की लड़ाई लम्बी नहीं खिचे बरना सबका वोट बेंक लुटता नज़र आ रहा था. आखिर कर जीत हो ही गयी?
कहने को तो यह आन्दोलन साधारण लग रहा होगा पर जिस तरह से बाबा रामदेव ,किरन बेदी और अग्निवेश जी ने इसको अंजाम दिया वह एक सोची समझी रणनीत के माफिक था गत नो महीनो से लगातार बाबा रामदेव का देश व्यापी भ्रमण भले ही योग शिविर के रूप में था पर मांग वही थी की करेप्सन का विस्तार गुल होना चाहिए काला धन वापिस आना चाहिए. ओर दोषियों को सजा मिलनी चाहिए ओर उनके द्वारा जमा रकम जप्त होनी चाहिए.. कल रात तक यह सोचा जा रहा था की आन्दोलन के तोड़ने के परियास जरुर सरकार करेगी. इसके अवज में शरद पवार का जी ऍम ओ से त्याग पत्र भी कारगर साबित नहीं हुआ. भीड़ बदती ही जा रही थी और सरकार की मीटिंग भी विफल हो रही थी.पर एक बात सच थी की सरकार जल्द से जल्द समाधान चाहती थी क्यों की उनके चुनावी दौरे अधर में थे.
एक और आजादी का नारा देकर अन्ना जी ने सावित कर दिया की वास्तव में देश को आजादी की जरुरत है क्यों की जिस तरह से रोज़ रोज़ स्केंडल हो रहे थे उससे यही सन्देश जा रहा था की सरकार के नियम और कानून कार गर साबित नहीं हो रहे है अंग्रेजो के ज़माने के संबिधान के तहत दिए गए अधिकार जिनको नेताओ ने कैद कर रखा है जिनका अब प्रियोग कारगर साबित नहीं हो रहा है. उसे सुधारने से अब ज्यादा नए बनाने में ही भलाई है. इन नेताओ और अधिकारिओ पर इन नियमो के तहत कारवाही नहीं हो सकती है. एक तरफ देश में भूख और गरीवी है तो दुसरी तरफ एस करती इन टॉप क्लास नेताओ की फौज है.
जीत तो हो गयी सरकार को गजट पास करना पडा पर अब जिम्मेदारी और बढ गयी है इन समर्थको को बांधे रखने की क्यों की देश में इस तरह का यह पहला आन्दोलन था जो अहिन्षा के द्वारा शुरू हुआ और ख़तम भी हुआ. लोगो को गांधी जी का जमाना याद आ ही गया होगा की किस तरह से आन्दोलन चला होगा अंग्रेजो को भगाने में हम कामयाब हो गए. हम भी कई बार कहते थे की आज गांधी जी होते तो इन नेताओ पर उनकी भी दाल नहीं गलती पर दाल गली सबने देखी. एक बुजुर्ग गांधी एक मात्र लाठी से देश को आज़ादी दिला गया. उसी तरह से अन्ना हजारे भी देश को ही नहीं दुनिया को हिला गया?एक सामान्य परिवार से सरोकार रखने वाला आदमी रातो रात हीरो बन गया?
जिम्मेदारी बढ गयी की जिस जनता ने अपार समर्थन दिया उसका भला करने के लिए इन नेताओ को संगठित करना ही पडेगा जिस आम आदमी के दिल में राम राज्य की कल्पना सजोई है उसको निभाना भी पडेगा. तो राजनेतिक संगठन भी खड़ा करना ही पडेगा क्यों की वर्तमान में जो नेता लोग है वह भी सत्ता के इर्द गिर्द घुमने वाले है जो सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते है उदाहरण झारखण्ड है केंद्र भी है जो उन विचार धाराओ के दलो को लेकर चलने पर मजबूर है जिनसे उनकी पटरी नहीं बैठ सकती है और उनको सर आँखों पर वैठाया जा रहा है जिनसे उनकी पार्टी और सरकार को ख़तरा भी है और उनके हर गलत कार्य को मानना भी मजबूरी है. लोग जव इकठे हो गए है तो उनको सही मार्ग दर्शन भी देना संगठन का कार्य है इस काम को किरण वेदी अच्छी तरह से कर सकती है क्यों की उन्होंने जन मानस को बहुत नजदीक से देखा है और महशुस किया है. साथ ही उनके साथ भी अन्याय हुआ है.यदि इस जीत का कारगर नतीज़ा नहीं निकला तो जनता फिर बट जायेगी और फिर कभी इकठे नहीं हो पायेंगे.
बाबा रामदेव ने जब २०१४ में चुनाव में कूदने की मनसा जताई थी तो हर कोई उनके इस व्यान को गंभीरता से नहीं ले रहा था आज कर दिखाया. पर यह मंच संगठित रह पायेगा यह विचारणीय विषय हो सकता है तो जो चिंगारी उन्होंने जलाई है उसे अंजाम तक तो पहुचाना ही होगा. चाहे हश्र कुछ भी हो. लोगो को डर है की जिस तरह से आवाज बुलंद हुई है उसके मुताविक परिणाम नहीं आये तो क्या होगा? यह सेलाब रुक पायेगा. देश की जनता जल्द ही उफान लेती है और जल्दी ठंडी पड़ और विश्वास डगमगा जाता है एक अदना सा आदमी जो महाराष्ट्र की भूमि में पैदा हुआ और
माँत्र कुछ ही घंटे में देश का हीरो बन गया. ना प्रान्त बाद ना भाषाबाद सब कुछ पीछे रह गया? लोगो को सारी जिन्दगी हो गयी राजनीत करते और वह कुछ ही दिनों में देश का रखवाला साबित हो गया बुलंद आवाज के साथ पूरा देश उसके साथ खडा हो गया गांधी बादी नेता के दीदार करने जानी मानी हस्तिया डेरा डाले रखी थी. तो कुछ तो ख़ास उसमे ? मेने भी उनकी बायो ग्राफी पडी तो लगा की जो आदमी अपने लिए कुछ नहीं सोचता और देश के लिए कुछ भी करने को तैयार है तो नायाक तो बनना तय है. कुछ लोगो को मेरा तर्क राजनेतिक संगठन बनाने का अच्छा नहीं लगा पर यह सच है की जिस जनता ने भरपूर समर्थन दिया है उनमे राम राज्य की कल्पना जगाई है तो पुरी भी करनी होगी. बिना अपनी आवाज बुलद किये कार्य सिद्ध नहीं होगा चिल्लाने को तो मीडिया और अखबार रोज़ ही चिल्लाते पर सुनवाई नहीं होती उसके लिए इनका संसद में बिधानसभा में जाना जरुरी है. जहां मन मर्जी के कानून नहीं बन सके गरीव जनता का अहित ना हो सके तो जीत के बाद मंच भी चाहिए जो इन पर अंकुश रख सके. कहने और करने में फर्क ना हो सरकार पर हमेशा ही दवाब रहे और अपने अजेंडे को लागु करा सके. चुनावी भाषण सुन कर तो देश ने साठ साल निकाल , पर राम राज्य नहीं मिल सका अब जिम्मेदारी जयादा बढ गयी है तो उसको निभाने का भी यही बखत है तो चलो देश के साथ राम राज्य की ओर. वियानो में नहीं हकीकत में ? बधाई जीत तो आखिर कार जनता की ही हुयी है.

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