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देश की परम्परा रही है कि टांग खीचो जो आगे चले, याद आ रही है ब्लू लाइन की जब उनके कर्मचारी कहते रहते थे कि आगे चलो आगे चलो पर जनता जहां चाहे रुक जाती थी क्यों कि उन्हें वही आराम मिलता था अब कोई कहने वाला नहीं है कि आगे चलो. देश की ही बात लेलो तो योग गुरु कहते है कि कालाधन है देश में पर काम तो वही करेगा जो सफ़ेद धन करता है यानी कहीं जाना हो तो टिकेट दिलाएगा और बीमार होगये तो इलाज़ कराएगा तो सफ़ेद धन और कला धन की अलग अलग परिभाषा देने से क्या फायदा?
देश में वही रोता है जो ज्यादा खाता है यानी सरकार रोटी है कि कर्मचारियो और नेताओ के बेतन बड़ा दिए तो पैसा कम पड़ गया टेक्स बढाओ डीज़ल बड गया तो बस के किराया बढाओ यही हाल है कि चुनाव खर्च बड गया तो दलाली बढाओ. गरीव जनता इस बारे में ज्यादा नहीं सोचती क्यों कि उनके पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं और खो भी गयी तो लोग यह ही कहेंगे कि शायाद मुक्कदर में थी ही नहीं?
अभी हाल में उडीसा सरकार ने नकसल बादियो के खिलाफ हथियार डाल दिए बिना सोचे कि आगे उनके हाथ कितने बेगुनाहों का खून करेंगे और कितनी अन्य प्रदेशो में कहर बरसायंगे? और कितने जवानो को अपना निसाना बनायंगे. दो अधिकारी को कैद से छुडा लिया गया. चलो दो परिवार तो बचे?
सामाजिक न्याय की बात करके न तो कोई राजनेतिक पार्टी उनको दोसी मानती है और ना सरकार और मीडिया. फिर भी उनकी चलती है और चलनी भी चाहिए. सवाल बही कि जव आतंकी को घटना को अंजाम देते है तो उनकी सुई पड़ोसी राष्ट्रों पर जा कर रुक जाती है और तमाम हो हल्ला होता है और अंतर राष्ट्रीय मंचो पर जवाब सवाल होते है और उनको कटघरों में खडा कर दिया जाता है पर देश के ही लोग यदि देश के लोगो की ह्त्या मारपीट और लूटपाट करते है तो उनको मात्र यह कह कर छोड़ दिया जाता है कि भटके हुए युवक है उनको रास्ता दिया जाए ना कोई बंद ना हड़ताल ना कोई शोर सरावा जब कि हत्या एह भी कर ही रहे है पिछले दिनों लगभग दो ही बार्दातो में १०० से ज्यादा जवान मारे गए थे? उनका भी परिवार होगा उनके भी बीबी बच्चे होंगे ? पर वह जान से हाथ धो बैठे पर कोई आहट नहीं हुयी?
योग गुरु की काला धन की परिकल्पना जायज है पर देश में ११० करोड़ लोग में कितने लोग है जो देश हित में करप्सन बंद कर देंगे आज जब हम खुद इमानदार नहीं है तो राजनेता कहाँ से इमानदार आयेगा? जो भी अमला आज रामदेव जी के साथ चल रहा है वह कही ना कही इस भवसागर में लिप्त रहा है यदि दिग्विजय सिंह जी कहते है कि चन्दा लेने से पहले पैसा यह नहीं बताता कि में काला हूँ या सफ़ेद तो धन तो धन है जाँच तो होनी ही चाहिए? पर अलख जगानी बंद नहीं होनी चाहिए?
यदि कुछ नया करने की चाह है तो जरुर आगे आये महत्मा गाँधी,जय प्रकाश नारायण और विनोवा भावे आगे आये है पर उनका हश्र जनता के सामने है गाँधी जी को छोड़ दे तो बाकी लोंगो का नाम भी नई पीडी नहीं जानती है रही बात गाँधी जी की सो उनको मारने वाला भी इसी हिंदुस्तान से पैदा हुआ. और उनके मध् निषेध की कल्पना का खासा मजाक जब लगता है उनकी जमा चीज़े एक मध् विव्साय में लिप्त ओधोग्पति ही बोली लगा कर इंडिया में वापिस लाता है यानी पुरी जिन्दगी शराब के खिलाफ रहे और उनकी लाज भी बही बचा पाया जो इस विव्साय में है? जय परकाश जी और विनोवा जी को तो लोग भूल ही गए होंगे?
कहीं कहीं लगता है कि रामदेव जी कमुनिस्ट विचारधारा पर तो नहीं चल रहे है उनका कहना था कि गाँधी जी ने विदेशी पूंजीवाद को ख़तम किया और देशी पूंजीवाद को बढावा दिया आखिर क्यों ? वही हाल रामदेव जी का है उनकी पतान्जाली पीठ अपनी आयुर्वेद की तो तारीफ़ करते है जव कि देश में और भी आयुर्बेद है जिनका सिक्का चल रहा है रामदेव को चाहिए कि विदेशी काला धन से पहिले स्वदेशी काला धन निकालने का जुगाड़ करे.आज ही एक समाचार चेनल पर दिखाया जा रहा था कि साउथ में किसी मंदिर के तहखाने में १०० करोड़ का कालाधन मिला है एक ईट चांदी की कीमत २० लाख रु है और ५२१ ईटे मिली है जब एक मंदिर में इतना कुछ है
तो देश तो मंदिरों की खान है यहाँ तो हर तहखाना में कुछ ना कुछ तो मिलेगा ही ?
यहाँ हर नेता हर अफसर हर बाबू छिपा हुआ तहखाना है उस पर छापे नहीं पड़ते है सिर्फ केश दर्ज कर उनको आगाह किया जाता है कि मोह भंग मत करना ……………?
सागर जिले में बम फोड़ कर बैंक लुट रहे है वहाँ की लोकल पोलिस बैंक के पैसे तो बापिस ला रही है पर अपराधी नहीं क्यों की अपराधी पुलिस से जियादा तेज़ है क्यों की तमाम सुरक्षा पुख्ता बंदोवस्त के बाबजूद अपराधी मस्त और पुलिस पस्त क्या कहे की देश में ही है सागर जिला और पी न बी बैंक और पुस्लिस और साइरन भी होंगे ही?
आगे चलो आगे चलो भूख और अभावो के सहारे कब तक सोचो देश के कर्ण धारो? देश का खजाना तो आपके पास है और जनता से कहते हो चलो आगे कैसे?
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