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कोशिश तो कीजिये काम होगा और नाम भी होगा . अयोध्या का प्रकरण जोर जोर से उछल रहा है कही मीटिंग हो रही है तो कही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हो रहे है पर किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की की
यदि देश डर से चल रहा है तो फिर कानून की किया जरुरत ? देश मै कुछ ही लोग है जो कानून से डरते है .
वोह पड़ा लिखा इंसान ?
क्यों की वोह जानता है की यदि कानून के पचरे मै पर गए तो उसी मै उलझ के रह जांयेंगे.
सबसे जियादा डरपोंक होते है कर्मचारी पर पेल कर गलत काम करते है और नेता नगरी से भे जुरे रहते है.
अयोध्या का जिक्र कर दिया है तो समाधान भी जरूर निकलना चाहिए नेताओ का कोई काम रुकता नाहे ये कहाबत है चाहे इस बात मै दम हो या न हो पर सच यह ही है.
उत्तेर प्रदेश मै जाने कितनी सरकारे आये और गयी पर अयोध्या का समाधान नहीं कर पाई क्यों की कुछ संबिधान का बास्ता देती रहे कुछ संविधान को अगुथा दिखती रही कितना सच हे ये पत्रकारिता भी जानती है और जनता भी?
आम आदमी को क्या चाहिए खुशाली जो काम धंधे के उपर ही निर्भर है काम होगा नवजवान खुस रहेगा
घर घर मै खुशिया आ ही जायेंगी .
हर काम को करबा सकते है यह नेता यदि वेतन विरधी के नाम पर संसद न चलने की धमकी काम कर सकती है तो अयोध्या की पुन निर्वाण क्यों नहीं हो सकता ?
यदि संसद देश की सर्वोच्य संस्था है उस पर दवाव बन सकता है तो प्रांतीय सर्कार उस नगर का विकास का जिम्मा क्यों नाहे ले सकती जिस पर पूरे देश की नहीं पूरे विश्व की नज़र है पूरे हिन्दू समाज की नज़र है. विधायक और सांसद की मदद से उधोग धंधे लग सकते है जिस कारण लोगो को काम मिल सकता है
स्वस्थ रहने के लिए अछे हॉस्पिटल बन सकते है नगर का विकास हो सकता है पर यदि Jan प्रितिनिधि चाहे तो सर्कार की नज़र मै नगर की समस्या रख सकते हे पर रखेंगे कियो कियो नहीं विकास चाहते यह लोग कही पर लिख कर बराबरी का दर्ज़ा ना हासिल कर ले यह लोग तो फिर राजनीत मत करो सेवा के नाम पर चुनाव होता है पर सेवा धर्म ही भूल जाते है और अगला चुनाव तो पांच साल बाद आएगा?
अयोध्या पर राजेनीत करना है तो जनता को साथ ले अयोध्या की जनता ही तय करे की अगला कदम क्या हो बाहरी लोग ना तय करे. तभी अयोध्या का कल्याण हो सकता है ना की बाहरे की बात सुनी जाये वोह क्या चाहता है ?
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